चुपके चुपके रात दिन
Tuesday, 7 July 2009
साहित्य - हसरत मोहानी
गायन - ग़ुलाम अली
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है ।
हमको अब तक आशिक़ी का वह ज़माना याद है ॥
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब-ओ-सद-हज़ाराँ इश्तियाक़ ।
तुझसे वह पहले पहल दिल का लगाना याद है ॥१॥
तुझसे मिलते ही वह कुछ बे-बाक हो जाना मेरा ।
और तेरा दाँतों में वह उंगली दबाना याद है ॥२॥
खींच लेना वह मेरा परदे का कोना दफ्फतन ।
और दुपट्टे से तेरा वह मुह छुपाना याद है ॥३॥
जानकर सोता तुझे वह क़सा-ए-पाबोसी मेरा ।
और तेरा ठुकरा के सर वह मुस्कुराना याद है ॥४॥
तुझ को जब तनहा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़ ।
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है ॥५॥
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था ।
सच कहो क्या तुम को भी वह कार-ख़ाना याद है ॥६॥
ग़ैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ।
वह तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है ॥७॥
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीँ ज़िक्र-ए-फ़िराक़ ।
वह तेरा रो रो के मुझको भी रुलाना याद है ॥८॥
दो-पहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये ।
वह तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है ॥९॥
आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़ ।
अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है ॥९॥
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की ।
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है ॥१०॥
देखना मुझको जो बरग़श्ता तो सौ सौ नाज़ से ।
जब मना लेना फ़िर ख़ुद रूठ जाना याद है ॥११॥
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह ।
मुद्धतें गुज़री पर अब तक वह ठिकाना याद है ॥१२॥
बेरुख़ी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्ताँ ।
और तेरा हाथों मे वह (वह कलाई मे तेरा) कंगन घुमाना याद है ॥१३॥
शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्त-ओ-पा होना तिरा ।
और मिरा वो छेड़ना वो गुदगुदाना याद है ॥१४॥
वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये ।
वह तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है ॥१5॥
बा-वजूद-ए-इद्दा-ए-इत्तक़ा 'हसरत' मुझे ।
आज तक अहद-ए-हवस का यह फ़साना याद है ॥१6॥
बाहज़ारां=हज़ार बार, in thousands
इज़्तिराब=चिन्ता, बेचैनी, restlessness
सद-हज़ारां=in hundred-thousands
इश्तियाक=लालसा, longing, craving
जानिब=side, direction,
बेबाक=स्पष्ट बोलना, bold, fearless
दफ़्फ़ातन=अचानक, instantly all at once, suddenly
क़सा-ए-पाबोसी=पैर चूमने की कोशिश, effort to kiss foot
अज़्राह-ए-लिहाज़=सावधानी से, by way of being considerate
कार-ख़ाना=युग, समय, Time, period
वस्ल=मुलाक़ात , meeting, union
ज़िक्र-ए-फ़िराक़=जुदाई का ज़िक्र, mention of separation
बर्गश्ता=रूठा हुआ,
सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़=secret company
इद्दा-ए-इत्तक़ा=धर्मनिष्ठता की शपथ
बा-वजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा=inspite of claim of being cautious
अहद-ए-हवस=चाहत के दिनों, age of lust
फ़साना=tale
0 comments:
Post a Comment