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आज चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है

Tuesday, 7 July 2009

साहित्य - बशीर बद्र
गायन - हरिहरन


आज चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है ।
पलकों पे चराग़ों (सितारों) को लिये रात खड़ी है ॥

ये बात की सूरत के भले दिल को बुरे हों ।
अल्लाह करे झूठ हो बहुतों से सूनी है ॥१॥

वह माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे ।
बचपन से (की) ग़ज़ल ही मेरी महबूब रही है ॥२॥

ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फ़ैला दिये साये ।
जिन राहों पे देखा के (है) बहुत धूप कड़ी है ॥३॥

हम दिल्ली भी हो आये हैं लाहोर भी घूमे ।
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है ॥४॥

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