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कभी किताबों मे फ़ूल रखना

Tuesday, 7 July 2009

साहित्य - हसन रिज़वी
गायन - ग़ुलाम अली


कभी किताबों मे फ़ूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना ।
हमें भी है याद आज तक वह नज़र से हर्फ़-ए-सलाम लिखना ॥

वह चाँद चहरे वह बहकी बातें सुलगते दिन थे महकती रातें ।
वह छोटे छोटे से कागज़ों पर मुहब्बतों के पयाम लिखना ॥१॥

गुलाब चहरों से दिल लगाना वह चुपके चुपके नज़र मिलाना ।
वह आरज़ूओं के ख़्वाब बुनना वह क़िस्सा-ए-ना-तमाम लिखना ॥२॥

मेरे नगर के हसीँ फ़िज़ाओं कहीं जो उन का निशान पाओ ।
तो पूछना के कहाँ बसे वह कहाँ है उनका क़याम लिखना ॥३॥

गयी रुतों मे हसन हमारा बस एक ही तो यह मशगला था ।
किसी के चहरे को सुबह कहना किसी की ज़ुल्फ़ों को शाम लिखना ॥४॥

दरख़्तों=trees
हर्फ़=letter/alphabet
पयाम=message
क़याम=lodge/location
मशगला=occupation

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