हमारो निरधन को धनराम
Tuesday, 7 July 2009
साहित्य-कबीर
हमारो निरधन को धनराम ।
चोर न लेवे, घटहु न जावे, गाढ़ै आवे काम ॥
सोवत जागत उठत बैठत
जपो निरंतर नाम ।
दिन दिन होत सवाई दौलत
कूटत नाही छदाम ॥१॥
अंतकाल मे छोड़ चलत सब
पास न एक बदाम ।
कहे कबीर यह धन के आगे
पारस का क्या काम ॥२॥
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