शोला था जल-बुझा हूँ
Tuesday, 7 July 2009
साहित्य - अहमद फ़राज़
गायन - मेहदी हसन
शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो ।
मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो ॥
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया ।
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो ॥१॥
ऐसा कहीं न हो के पलटकर न आ सकूँ ।
हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो ॥२॥
कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था 'फ़राज़' ।
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे न दो ॥३॥
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