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दर्द-ए-दिल दर्द-आशना जाने

Wednesday, 15 July 2009

साहित्य - बहादुर शाह 'ज़फ़र'


दर्द-ए-दिल दर्द-आशना जाने ।
और बेदर्द कॊई क्या जाने ॥

ज़ुल्फ़ तेरी है वह बला काफ़िर ।
पूछ मुझसे तेरी बला जाने ॥१॥

बे-वफ़ा जाने क्या वफ़ा मेरी ।
बा-वफ़ा हो तो वह वफ़ा जाने ॥२॥

कर दिया एक निगाह में बेखुद ।
चश्म-ए-क़ातिल है तो खुदा जाने ॥३॥

सरफ़राज़ी उसी की है जो 'ज़फ़र' ।
आपको सबका ख़ाक-ए-पा जाने ॥४॥

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