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स्वर समरोचित (अष्टपदी)

Tuesday, 7 July 2009

साहित्यम्-जयदेव


स्वर समरोचित विरचित वेषा
गलित कुसुम दल विलुलित केशा
काऽपि चपला मधु रिपुणा |
विलसति युवतिरधिक गुणा
काऽपि चपला मधु रिपुणा ॥

हरिपरिरंभण वलित विकारा
कुचकलशोपरि तरलित हारा
काऽपि चपला मधु रिपुणा ॥१॥

चंचल कुण्डल दलित कपोला
मुखरितरशन जघन गति लोला
काऽपि चपला मधु रिपुणा ॥२॥

श्री जयदेव भणितमति ललितम्
कलिकलुषम् शमयतु हरिरमितम्
काऽपि चपला मधु रिपुणा ॥३॥

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