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तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुज़री है

Monday, 3 August 2015

साहित्य - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रात यूँ दिल में तेरी खोयी हुयी याद आयी,
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाये,
जैसे सहरा में हौले से चले बादल सी,
जैसे बीमार को बेबजह क़रार आ जाये

तुम आये हो, ना शब-ए-इंतज़ार गुज़री है |
तलाश में है सहर, बार बार गुज़री है ॥

जुनूँ में जितनी भी गुज़री, ब-कार गुज़री है |
अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है ॥१॥

हुयी है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तगू जिस शब |
वह शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है ॥२॥

वह बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र ना था |
वह बात उनको बहुत ना-गवार गुज़री है ॥३॥

ना गुल खिले हैं, ना उनसे मिले, ना मय पी है |
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है ॥४॥

चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़री है |
क़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है ॥५॥


ब-कार=useful, well spent
अगरचे=although
नासेह = Advisor, Preacher
कू-ए-यार=Beloved's home/street
सर-ए-कू-ए-यार=Towards/at the beloved's home
ग़ारत=pillage, plunder
गुल-चीं=flower picker
ग़ारत-ए-गुल-चीं=destruction by the flower picker
क़फ़स=Cage
बे-क़रार=uneasy,restless

Dr. Radhika Chopra performs (YouTube)

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