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एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं

Wednesday, 5 August 2015

साहित्य - सुदर्शन फ़ाकिर
संगीत - ताज अहमद ख़ान
गायन - महमद रफ़ी


एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं |
जो ग़म-ए-दोस्त में नशा है, शराबों में नहीं ॥

हुस्न की भीख ना मांगेंगे, ना जल्वों की कभी |
हम फ़क़ीरों से मिलो खुल के, हिजाबों में नहीं ॥१॥

हर जगह बीते हैं आवारा ख़यालों की तरह |
ये अलग बात है हम आपके ख़्वाबों में नहीं ॥२॥

ना डूबो साग़र-ओ-मीना में यह ग़म, एै ‘फ़ाकिर’ |
के मक़ाम इनका दिलों में हैं, शराबों में नहीं ॥३॥


साग़र-ओ-मीना=Cup and Goblet/Decanter (of wine)

Mohammad Rafi performs :

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