दरबारी कान्हऱा - समझत ना मन तो मेरो
Wednesday, 20 April 2016
राग - दरबारी कान्हऱा
ताल - द्रुत तीनताल
स्थायी
समझत ना मन तो मेरो,
लाख बार समझावत हूँ मैं,
काहे न कटत अंधेरा ॥
अंतरा
झूठी माया झूठी काया,
झूठा जगत बरेसा,
छत प्रभु एक के राम ॥
सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
राग - दरबारी कान्हऱा
ताल - द्रुत तीनताल
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