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चक्की चल रही

Tuesday, 23 July 2013

साहित्य - कबीर


चक्की चल रही, कबीरा बैठा रोयी
दोनो पुड़ के बीच में साझा ना निकले कोयी ।
चक्की चल रही, कबीरा बैठा जोयी
खूंटा पकड़ो निज नाम का, तो साझा निकले जो सोयी ॥

छोड़ के मत जाअो एकली रे
बंजारा रे बंजारा रे ।
दूर देस रहे मामला
अब जागो प्यारा रे ॥

अपना साहेब ने महल बनायी, बंजारा रे, बंजारा रे ।
गहरी गहरी माहे बीन बजायी, बंजारा हो ॥१॥

अपना साहेब ने बाग़ बनायी, बंजारा रे, बंजारा रे ।
फूल भरी लायी छाब रे, बंजारा हो ॥२॥

कहत कबीरा धर्मीदास को ।
संत अमरापुर मालना, बंजारा रे ॥३॥

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