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खुली जो आँख तो वो था

Saturday, 8 February 2014

साहित्य - फ़रहात शहज़ाद
गायन - मेहदी हसन


खुली जो आँख तो वह था न वह ज़माना था ।
दहकती आग थी, तन्हाई थी, फ़साना था ॥

ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में ।
के जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था ॥१॥

यह क्या के चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गये ।
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था ॥२॥

मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है ।
वह कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था ॥३॥

खुद अपने हाथ से 'शह्ज़ाद' उस को काट दिया ।
के जिस दरख़्त के टहनी पे आशियाना था ॥४॥

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ಕರುಣಿಸೋ ರಂಗ ಕರುಣಿಸೋ

Thursday, 6 February 2014

ಸಾಹಿತ್ಯ-ಪುರಂದರದಾಸ


ಕರುಣಿಸೋ ರಂಗ ಕರುಣಿಸೋ
ಹಗಲು ಇರುಳು ನಿನ್ನ ಸ್ಮರಣೆ ಮರೆಯದಂತೆ |

ರುಕುಮಾಂಗದನಂತೆ ವ್ರತವ ನಾನರಿಯೆ
ಶುಕಮುನಿಯಂತೆ ಸ್ತುತಿಸಲು ಅರಿಯೆ
ಬಕವೈರಿಯಂತೆ ಧ್ಯಾನವ ಮಾಡಲರಿಯೆ
ದೇವಕಿಯಂತೆ ಮುದ್ದಿಸಲರಿಯೆ ಕೃಷ್ಣ ||೧||

ಗರುಡನಂದದಿ ಪೊತ್ತು ತಿರುಗಲು ಅರಿಯೆ
ಕರೆಯಲು ಅರಿಯೆ ಕರಿರಾಜನಂತೆ
ವರಕಪಿಯಂತೆ ದಾಸ್ಯವ ಮಾಡಲರಿಯೆ
ಸಿರಿಯಂತೆ ನೆರೆದು ಮೋಹಿಸಲರಿಯೆ ಕೃಷ್ಣ ||೨||

ಬಲಿಯಂತೆ ದಾನವ ಕೊಡಲು ಅರಿಯೆ
ಭಕ್ತಿ ಛಲವನರಿಯೆ ಪ್ರಹ್ಲಾದನಂತೆ
ಒಲಿಸಲು ಅರಿಯೆ ಅರ್ಜುನಂತೆ ಸಖನಾಗಿ
ಸಲಹೋ ದೇವರದೇವ ಪುರಂದರವಿಠಲ ||೩||

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तीर्थ विठ्ठल क्षेत्र विठ्ठल

Tuesday, 4 February 2014

साहित्य-नामदेव
संगीत-राम फाटक
स्वर-भीमसेन जोशी
राग-अल्हैय्याबिलावल , आसावरी , जोगिया


तीर्थ विठ्ठल क्षेत्र विठ्ठल ।
देव विठ्ठल देवपूजा विठ्ठल ॥१॥

माता विठ्ठल पिता विठ्ठल ।
बंधु विठ्ठल गोत्र विठ्ठल ॥२॥

गुरू विठ्ठल गुरुदेवता विठ्ठल ।
निधान विठ्ठल निरंतर विठ्ठल ॥३॥

नामा म्हणे मज विठ्ठल सांपडला ।
म्हणोनी कळिकाळां पाड नाही ॥४॥

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ರಾಮ ರಾಮ ರಾಮ ಸೀತಾರಾಮ

Monday, 3 February 2014

ಸಾಹಿತ್ಯ-ಪುರಂದರದಾಸ


ರಾಮ ರಾಮ ರಾಮ ಸೀತಾರಾಮ ಎನ್ನಿರೋ ।
ಅಮರಪತಿಯ ದಿವ್ಯ ನಾಮ ಅಂದಿಗೊದಗಿ ಬಾರದೋ ॥

ಭರದಿ ಯಮನ ಭಟರು ಬಂದು ಹೊರಡಿರೆಂದು ಮೆಟ್ಟಿ ಮುರಿಯೆ ।
ಕೊರಳಿಗಾತ್ಮ ಸೇರಿದಾಗ ಹರಿಯ ಧ್ಯಾನವೊದಗದೋ॥೧॥

ಇಂದ್ರಿಯಂಗಳೆಲ್ಲ ಕೂಡಿ ಬಂದು ತನುವ ಮುಸುಕಿದಾಗ ।
ಸಿಂಧುಸುತೆಯ ಪತಿಯನಾಮ ಅಂದಿಗೊದಗಿಬಾರದೋ ॥೨॥

ಶ್ವಾಸೋಛ್ವಾಸವೆರಡು ಕಂಠದೇಶದಲ್ಲಿ ಸಿಲುಕಿದಾಗ ।
ವಾಸುದೇವನೆಂಬನಾಮ ಆ ಸಮಯಕೊದಗದೋ ॥೩॥

ಶೃಂಗಾರ್ಧ ದೇಹವೆಲ್ಲ ಅಂಗ ಮುರಿದು ಬೀಳುವಾಗ ।
ಕಂಗಳಿಗಾತ್ಮ ಸೇರಿದಾಗ ಶ್ರೀರಂಗನ ನಾಮವೊದಗದೋ ॥೪॥

ವಾತಪಿತ್ಥವೆರಡು ಕೂಡಿ ಈ ತನುವನಾವರಿಸಿ ।
ಧಾತುಗುಂದಿದಾಗ ರಘುನಾಥನ ಧ್ಯಾನವೊದಗದೋ ॥೫॥

ಕಲ್ಲು ಮರನಾಗಿ ಜ್ಞಾನವಿಲ್ಲದಾಗ ಮರಣವೊದಗೆ ।
ಫುಲ್ಲನಾಭ ಕೃಷ್ಣನೆಂದು ಸೊಲ್ಲು ಬಾಯಿಗೊದಗದೋ ॥೬॥

ಕೆಟ್ಟ ಜನ್ಮದಲ್ಲಿ ಪುಟ್ಟಿ ದುಷ್ಟಕರ್ಮ ಮಾಡಿ ದೇಹ ।
ಬಿಟ್ಟು ಹೋಗುವಾಗ ಪುರಂದರವಿಠಲನ ನಾಮವೊದಗದೋ ॥೭॥

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आपकी याद आती रही

Thursday, 30 January 2014

साहित्य - मक़दूम मोहिउद्दीन
संगीत - जयदेव
चित्रपट-गमन
गायन - छाया गांगुली


आपकी याद आती रही रात भर ।
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर ॥

रात भर दर्द की शम्मा जलती रही ।
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर ॥१॥

बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा ।
याद बन बनके आती रही रात भर ॥२॥

याद की चाँद दिल में उतरती रही ।
चाँदनी जगमगाती रही रात भर ॥३॥

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा ।
कोई आवाज़ आती रही रात भर ॥४॥


Chhaya Ganguly performs :

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अजम् निर्विकल्पम्

Wednesday, 1 January 2014

साहित्यम् - आदिशंकराचार्यः

अजम् निर्विकल्पम् निराकारमॆकम्
निरानंदमानंदमद्वैतपूर्णं
परम् निर्गुणम् निर्विशॆषम् निरीहम्
परब्रह्मरूपम् गणॆशम् भजॆम ॥१॥

गुणातीतमानम् चिदानंदरूपम्
चिदाभासकम् सर्वगम् ज्ञानगम्यम्
मुनिध्यॆयमाकाशरूपम् परॆशम्
परब्रह्मरूपम् गणॆशम् भजॆम ॥२॥

जगत्कारणम् कारणज्ञानरूपम्
सुरादिम् सुखादिम् गुणॆशम् गणॆशम्
जगद्व्यापिनम् विश्ववंद्यम् सुरॆशम्
परब्रह्मरूपम् गणॆशम् भजॆम ॥३॥

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दिल में इक लहर सी उठी है अभी

Thursday, 14 November 2013

साहित्य - नासिर क़ाज़मी


दिल में इक लहर सी उठी है अभी ।
कोई ताज़ा हवा चली है अभी ॥

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में ।
कोयी दीवार सी गिरी है अभी ॥१॥

कुछ तो नाज़ुक़ मिज़ाज हैं हम भी ।
और यह चोट भी नयी है अभी ॥२॥

भरी दुनिया में जी नहीं लगता ।
जाने किस चीज़ की कमी है अभी ॥३॥

तू शरीक़-ए-सुखन नहीं है तो क्या ।
हम-सुखन तेरी खामोशी है अभी ॥४॥

याद के बे-निशाँ जज़ीरों से ।
तेरी आवाज़ आ रही है अभी ॥५॥

शहर की बे-चिराग़ गलियों में ।
ज़िन्दग़ी तुझको ढूँढती है अभी ॥६॥

सो गये लोग उस हवेली के ।
एक खिड़की मगर खुली है अभी ॥७॥

वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर' ।
ग़म न कर ज़िन्दग़ी पड़ी है अभी ॥८॥



Audio Links : Ghulam Ali, Ghulam Ali

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उठत जिया हूक सुनी कोयल कूक

Monday, 21 October 2013

रचना - श्रीकृष्ण नारायण रतनजानकर
राग - बसंत मुखारि
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
उठत जिया हूक सुनी कोयल कूक,
बिरहा अगन झरी,
रैन-दिन नहीं चैन पड़े मोरी, का री करूँ ॥

अंतरा
लगन लगी मिलवे को चाहे,
जिया नहीं मानत,
निस-दिन नीर झरत नैनन सों, का री करूँ ॥

Smt. Malini Rajukar performs :

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याद पिया की आये

Saturday, 5 October 2013

राग - भिन्न शड्ज पर आधारित
ताल - जत



याद पिया की आये
यह दुःख सहा ना जाये, हाये राम

बाली उमरिया सुनरी सजनिया
जोबन बीता जाये, हाये राम

बैरी कोयलिया कूहूक सुनाये
मुझ बिरहन जिया जलाये
पी बिन रहा ना जाये, हाये राम

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आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक

साहित्य - मिर्ज़ा ग़ालिब


आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक ।
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक ॥

दाम हर मौज मे है, हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग ।
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक ॥१॥

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब ।
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक ॥२॥

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल ना करोगे लेकिन ।
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक ॥३॥

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम ।
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक ॥४॥

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती, ग़ाफ़िल ।
गर्मी-ए-बज़्म है एक रक़्स-ए-शरर होने तक ॥५॥

ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज ।
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक ॥६॥


सर होना = conquer, tame
ज़ुल्फ़ के सर होना = tame the curls of hair
दाम [Prk. दामं; S. दाम (base दामन्), rt. दा 'to bind'], = A rope, cord, string; a fetter... here, a net
दाम हर मौज मे = A net in every wave
नहंग = a crocodile,a water dragon or other similar monster
काम-ए-नहंग = action of crocodile
हल्क़ा-ए-सद = hundred chains
हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग = hundred lines of crocodiles/monsters in vile action
गौहर = pearl
सब्र-तलब = needing/demanding patience
ख़ून-ए-जिगर = devastation with pain
तग़ाफ़ुल = ignore
खुर - sun
परतव - rays
परतव-ए-ख़ुर - sun rays
शबनम - dew
फ़ना = self-destruction
इनायत की नज़र = merciful glance
बेश = lot, too much
फ़ुर्सत-ए-हस्ती = Duration Of Life
ग़ाफ़िल = negligent (here, addressing the muse)
गर्मी-ए-बज़्म = Warmth of the gathering/party
रक़्स-ए-शरर = Dance of the spark
ग़म-ए-हस्ती = sorrows of life
जुज़ = besides, except, other than
मर्ग = death
शमा = candle
सहर = Dawn/Morning

Audio Links : Ghulam Ali, Jagjit Singh, Jagjit Singh, Ustad Barkat Ali Khan
Analysis here

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