उठत जिया हूक सुनी कोयल कूक
Monday, 21 October 2013
रचना - श्रीकृष्ण नारायण रतनजानकर
राग - बसंत मुखारि
ताल - द्रुत तीनताल
स्थायी
उठत जिया हूक सुनी कोयल कूक,
बिरहा अगन झरी,
रैन-दिन नहीं चैन पड़े मोरी, का री करूँ ॥
अंतरा
लगन लगी मिलवे को चाहे,
जिया नहीं मानत,
निस-दिन नीर झरत नैनन सों, का री करूँ ॥
Smt. Malini Rajukar performs :
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