बरखा रात की चांदनी
Monday, 30 December 2019
राग - केदार
ताल - तीनताल
स्थायी
बरखा रात की चांदनी में,
बरसत रस देखो बूँद बूँद॥
अंतरा
बाँसुरी बजावत सब को रिझावत,
गावत सब मिल राग केदार ॥
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सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
राग - केदार
ताल - तीनताल
राग - केदार
ताल - तीनताल
राग - केदार
ताल - एकताल
राग - केदार
ताल - एकताल
राग - केदार
ताल - एकताल
ಸಾಹಿತ್ಯ-ಪುರಂದರದಾಸ
राग - जयजयवंती,
ताल - द्रुत तीनताल
राग - जयजयवंती,
ताल - विलंबित तीनताल
ಸಾಹಿತ್ಯ-ಆನಂದದಾಸ
कुसुमाग्रज
संगीत-जितेंद्र अभिषेकी,
स्वर-जितेंद्र अभिषेकी
राग-चारुकेशी
नाटक - ययाति आणि देवयानी