कान्हा रे नंदनंदन
Monday, 30 December 2019
राग - केदार
ताल - तीनताल
स्थायी
कान्हा रे नंदनंदन,
परम निरंजन हे दुःख भंजन॥
अंतरा
कंठ बनी मोतियन की माला,
पहिरत मुदित भई ब्रजबाला ॥
सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
राग - केदार
ताल - तीनताल
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