श्री - सांझ भई
Saturday, 24 March 2018
रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - श्री
ताल - एकताल
स्थायी
सांझ भई, अजहूँ नहीं आये,
गौवन के प्रतिपाल चरवाल चरैय्या ॥
अंतरा
हाथ बंसी धर, मुकुट सीस साजे,
‘सदारंग’ कर रूप सरूप अंगवा ॥
सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - श्री
ताल - एकताल
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