श्री - सांझ की बेर
Saturday, 24 March 2018
रचना - व्यास C R
राग - श्री
ताल - तीनताल
स्थायी
सांझ की बेर सुमिर हरि नाम,
जो ही सब को करत भव पार ॥
अंतरा
काहे धरे बिरथ अभिमान,
समझ मन सोच नी को बिचार ॥
सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
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