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भूपाल तोडी - अब मन तो कैसे रिझाऊँ

Saturday, 24 March 2018

रचना - व्यास C R
राग - भूपाल तोडी
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
अब मन तो कैसे रिझाऊँ, कछु ना सूझे,
कल ना परे, का से कहूँ ये मोरी बिधा ॥

अंतरा
आस लगी मोहे ताल सुरन की,
भेद ना पायो गुनीदास बिना॥

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भूपाल तोडी - नैय्या उतारो

रचना - विलायत हुसेन ख़ान ‘प्राणपिया’
राग - भूपाल तोडी
ताल - विलंबित रूपक ताल


स्थायी
नैय्या उतारो पार करो,
बीच भँवरमें पड़ी,
अब तू ही एक छिबनहार ॥

अंतरा
‘प्राणपिया’ तुम, गुरु महाग्यानी,
दास ही तेरो, राखो दया की नजर॥

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बैरागी भैरव - साँवरिया घर नहीं आये

रचना - व्यास C R
राग - बैरागी भैरव
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
साँवरिया घर नहीं आये, रतिया बिताई,
तरपत सारी उन बिन रोवत रोवत ॥

अंतरा
तुम्हींसो हूँ डारी थी मोरी आन,
मंदिरवा में बेग पधारो,
बिन ‘गुनिजान’ कछुक नहिं भावत॥

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बैरागी भैरव - सुमिर ले भोर समे

रचना - व्यास C R
राग - बैरागी भैरव
ताल - विलंबित झपताल


स्थायी
सुमिर ले भोर समे राजाराम को,
तब तू पावे साच समाधान रे ॥

अंतरा
माया भरी जगत में जो तुम देखत है,
कछुक नहीं आवे काम ‘गुनिजान’ रे॥

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मियाँ मल्हार - बिजुरी चमके बरसे मोहरवा

राग - मियाँ मल्हार
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
बिजुरी चमके बरसे,
मेहरवा आई बदरिया,
गरज गरज मोहे अतही डरावे ॥

अंतरा
गर गरजे घन बिजली चमके,
पपीहा पिहू पिहू टेर सुनावे,
का करूं कित जाऊं,
मोरा जियरा तरसे ॥

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मियाँ मल्हार - करीम नाम तेरो

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - मियाँ मल्हार
ताल - एकताल


स्थायी
करीम नाम तेरो,
तू साहेब करतार सतार ॥

अंतरा
दुःख जलद दूर कीजे, सुख देवो सबन को,
'सदारंग' बिनति करतार, सुरती ले हो सतार ॥

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श्री - सांझ की बेर

रचना - व्यास C R
राग - श्री
ताल - तीनताल


स्थायी
सांझ की बेर सुमिर हरि नाम,
जो ही सब को करत भव पार ॥

अंतरा
काहे धरे बिरथ अभिमान,
समझ मन सोच नी को बिचार ॥


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श्री - हरि के चरण कमल

रचना - विष्णु नारायण भातखंडे 'हररंग'
राग - श्री
ताल - झपताल


स्थायी
हरि (प्रभु) के चरण कमल निसदिन सुमिर रे,
भाव धर सुध भीतर, भवजलधि तर रे ॥

अंतरा
जोई जोई धरत ध्यान, पावत समाधान,
'हररंग' कहे ध्यान, अवधि चित तर रे॥


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श्री - सांझ भई

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - श्री
ताल - एकताल


स्थायी
सांझ भई, अजहूँ नहीं आये,
गौवन के प्रतिपाल चरवाल चरैय्या ॥

अंतरा
हाथ बंसी धर, मुकुट सीस साजे,
‘सदारंग’ कर रूप सरूप अंगवा ॥


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श्री - आओ मोरे मंदिर

राग - श्री
ताल - तीनताल


स्थायी
आओ मोरे मंदिर, जसुमती नंदन,
मोहनी मूरत अत मन भाये॥

अंतरा
हूँ तो अकेली, रजनी छायी,
गिरदेव नंदन, दरस दिखाओ॥


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श्री - लागोहि आवेरे पियू

राग - श्री
ताल - एकताल


स्थायी
लागोहि आवेरे पियू ,
अत बरजो ना मानेहि ॥

अंतरा
जबतें पिया परदेस गवन कीनो,
अब माई देख री सोवे ॥


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