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बिहाग - सब सखियाँ चलो प्रभू के दरशन

Wednesday, 20 April 2016

राग - बिहाग
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
सब सखियाँ चलो प्रभू के दरशन,
धन धन भाग सुफल होत नयन ॥

अंतरा
सोला सिंगर सजो अत सुलझन,
कुसुम सुगंधित हररंग सुभ क्षण,
गिरिधर प्रभू के चरनन अरपण,
आज करो तन मन धन अरपण ॥

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बिहाग - टेर सुने पिया की आवन की

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - बिहाग
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
टेर सुने पिया की आवन की,
सुध बिसरायी मेरे मन की ॥

अंतरा
जब ही मिलत मोरे आन ‘सदारंग’,
तब ही होत सखी मेरे मन की ॥

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बिहाग - कैसे सुख सोवे

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - बिहाग
ताल - विलंबित एकताल


स्थायी
कैसे सुख सोवे नींदरिया,
श्याम सूरत चित चढ़ी ॥

अंतरा
सोय सोय ‘सदारंग’ अकुलाये,
या विधि गाँठ पड़ी ॥

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बिहाग - कवन ढंग तोरा सजनी

राग - बिहाग
ताल - विलंबित एकताल


स्थायी
कवन ढंग तोरा सजनी,
तू तो इतरात उतरात बीती जात ॥

अंतरा
छांड मान उठ ले हो बलैय्याँ,
सोत लगा रही घात ॥

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बागेश्री - कौन करत तोरी बिनत

राग - बागेश्री
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
कौन करत तोरी बिनत पियरवा,
मानो ना मानो हमरी बात ॥

अंतरा
जब से गयो मोरी सुध-बुध लीनी,
चाहे सौतन के घर जात ॥

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बागेश्री - ढूंढी ढूंढी बाट बाट

राग - बागेश्री
ताल - द्रुत एकताल


स्थायी
ढूंढी ढूंढी बाट बाट,
अमरय्यन की मोरे नंदलाल,
तोरे कारन ॥

अंतरा
थक गये अब हमरे पाँव,
रात हो गयी अपार,
सूझ बूझ तोरे न कैसे, का करूँ दय्या ॥

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बागेश्री - चलत चलत मथुरा नगरी में

राग - बागेश्री
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
चलत चलत मथुरा नगरी में,
श्याम काम जिया में बसेरा,
नंद दिखाये छैला छबीला ॥

अंतरा
बिंदिराबन में फूल फुलेरा,
गोकुल का ये राज दुलारा ॥

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बागेश्री - बिनती सुनो मोरी

राग - बागेश्री
ताल - विलंबित झपताल


स्थायी
बिनती सुनो मोरी, अवधपुर के बसैय्या,
तुम बिन कवन मोरे, दुख के हरैय्या ॥

अंतरा
जहाँ जहाँ पऱी बीर, तहाँ तहाँ दियो धीर,
जानकी पती राम, भव के तरैय्या ॥

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बहादुरी तोडि - ए महादेव

राग - बहादुरी तोडि
ताल - विलंबित रूपक


स्थायी
ए महादेव, देवन पती,
पार्वती पती, ईश्वरेश,
नीलकंठ, पूर्ण पंचानान, दुख हरन ॥

अंतरा
वामदेव, महादेव,
गंग श्रीकर, जटाजूट,
ढमरू ढम ढम बाजे, सुख करन ॥

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पूरिया धनाश्री - पायलिया झनकार

राग - पूरिया धनाश्री
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
पायलिया झनकार मोरी,
झनन झनन बाजे झनकारी ॥

अंतरा
पिया समझाऊँ समझत नाहि,
सास ननद मोरी देगी गारी ॥

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पूरिया धनाश्री - पार करो अरज सुनो

राग - पूरिया धनाश्री
ताल - विलंबित झपताल


स्थायी
पार करो अरज सुनो, नाव मोरी,
आया मैं तेरे द्वारे ॥

अंतरा
दीन दुनिया में, तेरो नाम रौशन,
हिंद के पीर ख़्वाजा, आया मैं तेरे द्वारे ॥

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नट मल्हार - आज न को भयी

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - नट मल्हार
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
आज न को भयी मिलना उसी से,
घरवाले लोगवा जा के ॥

अंतरा
मन रंग लिये नयी रुचि गाये,
तब तो ‘सदारंग’ निरखे ॥

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नट मल्हार - लागी लागी तेरो नैन

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - नट मल्हार
ताल - विलंबित तीनताल


स्थायी
लागी लागी तेरो नैन,
बान मेरो खेले जा पर ॥

अंतरा
एक घड़ी एक दिन,
हो रहे ‘सदारंग’ ना ए घर ॥

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दुर्गा - पायल छम छम बाजे

राग - दुर्गा
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
पायल छम छम बाजे सखी री,
श्याम भी आये बजाये बाँसुरी ॥

अंतरा
सब सखियन मिल घेर लियो मोहे,
जान न दे मोहे करत ठिठोरी ॥

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दुर्गा - चतुर सुगरा बालमवा

राग - दुर्गा
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
चतुर सुगरा बालमवा,
ले हो कन्हैय्या तोरा ॥

अंतरा
बहुत दिनन मे मिलन भयिलवा,
काहे अब तो रार ॥

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दरबारी कान्हऱा - समझत ना मन तो मेरो

राग - दरबारी कान्हऱा
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
समझत ना मन तो मेरो,
लाख बार समझावत हूँ मैं,
काहे न कटत अंधेरा ॥

अंतरा
झूठी माया झूठी काया,
झूठा जगत बरेसा,
छत प्रभु एक के राम ॥

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दरबारी कान्हऱा - किन बैरन कान भरे

राग - दरबारी कान्हऱा
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
किन बैरन कान भरे,
मोरे पिया मो से बोलत नाही ॥

अंतरा
हूँ तो वा की चरनन दासी,
चरनन शीश धरे ॥

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दरबारी कान्हऱा - और नहीं कछु काम के

राग - दरबारी कान्हऱा
ताल - विलंबित एकताल


स्थायी
और नहीं कछु काम के,
भरोसे अपने राम के ॥

अंतरा
जो चाहूँ सो देत पधारत अंत लेत सुख धाम के,
भरोसे अपने राम के ॥

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तोडि - बाजो री मुहमद सा

रचना - नियामत ख़ान 'सदारंग'
राग - तोडि
ताल - विलंबित तीनताल


स्थायी
बाजो री मुहमद सा धर अनत बधावर,
पूछे मन चित काजे ॥

अंतरा
तन मन धन पाईल, सजनी,
‘सदारंग’ घर राख राख रज ॥

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तोडि - पिया बिन मोरा

राग - तोडि
ताल - विलंबित एकताल


स्थायी
पिया बिन मोरा जिया अकुलाये,
साँवरी सूरत मोहे भाये ॥

अंतरा
गोकुल नाहीं वृंदावन नाही,
का करुँ अब, कौन मोहे भाये ॥

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गोरख कल्याण - बाजे मुरली मन बाँवरा

राग - गोरख कल्याण
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी

बाजे मुरली मन बाँवरा,
चलो आवे प्यारे देखे कन्हैय्या ॥

अंतरा
बन बीच शोभे रस राग खेले,
मम जीव संगी सख साँवरा ॥

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गोरख कल्याण - चुनरिया मोरी भीग गयी


राग - गोरख कल्याण
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी

चुनरिया मोरी भीग गयी रे,
अब कैसे घर जाऊँ ॥

अंतरा
सांस बूरी मोरी ननंद हटेली,
कौन बहाने अब बनाऊँ रे ॥

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गोरख कल्याण - धन धन भाग जागे हो


राग - गोरख कल्याण
ताल - विलंबित एकताल


स्थायी

धन धन भाग जागे हो,
गोरी तोरे नैना सलोने,
मधु भरे पिया प्यारा॥

अंतरा
अब की बैर,
मोहे जाने ना देत,
मधु भरे पिया प्यारा ॥

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कौंसी कान्हऱा - काहे करत मो से बरजोरी


राग - कौंसी कान्हऱा
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
काहे करत मो से बरजोरी,
द्वार गुसैय्याँ, पर हू पैय्याँ ॥

अंतरा
बार बार बरजो नहीं माने,
जाओ जाओ अज छेड़ो ना कान्हा तुम,
मिलत हसत सब ब्रिज की नारी॥

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कौंसी कान्हऱा - कोलो मान


राग - कौंसी कान्हऱा
ताल - विलंबित तीनताल


स्थायी
कोलो मान मन री सखी प्रीतम सों,
पीरा पाछे उन्ही संग तोहे काम ॥

अंतरा
छांड दे मान मोरी आली,
जा सों रंगीले,
पीरा पाछे उन्ही संग तोहे काम॥

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शिवमत भैरव - प्रथम अल्लाह


राग - शिवमत भैरव
ताल - विलंबित एकताल


स्थायी
प्रथम अल्लाह आवो अकबर,
धूमम बूझे रसूल, आवो चितधर ॥

अंतरा
बेचून बेच, गुन सून पार दे,
मोहित ध्यान धर, आवो चित धर ॥

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आहिर भैरव - पिया परदीन परम सुख चतुर


राग - आहिर भैरव
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
पिया परदीन परम सुख चतुर,
मोहनी मूरत नट नागर ॥

अंतरा
रोम रोम चाहे वर्णन चाहे मो को,
ऐसो श्याम सुंदर नट नागर रे ॥

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