अभोगी - चरन धर आयो रे
Wednesday, 25 October 2017
राग - अभोगी
ताल - विलंबित झपताल
स्थायी
चरन धर आयो रे, मो पर दया करो,
आली री धन धन, आज मेरे भाग ॥
अंतरा
धन आज की घड़ी, धन यह पल मुहुरत,
मोहे लीनो अपने शरण, धन आज सुहाग ॥
सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
राग - अभोगी
ताल - विलंबित झपताल
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