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हम ने एक शाम चिराग़ों से सजा रखी है

Tuesday 17 September 2013

साहित्य - ताहिर फ़राज़
संकलन - काश
गायन - हरिहरन


हम ने एक शाम चिराग़ों से सजा रखी है ।
शर्त लोगों ने हवाओँ से लगा सखी है ॥

हम भी अंजाम की परवाह नही करते यारो ।
जान हम ने भी हथेली पे उठा रखी है ॥१॥

शायद आ जाये कोई हम से ज़्यादा प्यासा ।
बस यही सोचके थोड़ी बचा सखी है ॥२॥

तुम हमें क़त्ल तो करने नहीं आये लेकिन ।
आस्तीनों में यह क्या चीज़ छुपा सखी है ॥३॥

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