बंगरी मोरी मुरक गई छांडो
Monday, 16 September 2013
राग - मारवा
ताल - द्रुत तीनताल
स्थायी
बंगरी मोरी मुरक गई छांडो ना बैया,
तोरी काकीली चोरी लंगरवा,
हसत खेलत कीन्ही मो से बरजोरी ॥
अंतरा
संग के सहेलिया लुभाय गाईयॉं,
वह तो दूर दूर निकसो जात ॥
Audio Link : Bhimsen Joshi
1 comments:
बहुत ही शानदार..!१
Post a Comment