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ప్రెమ లేదని, ప్రేమించరాదని

Monday, 25 February 2013

సాహిత్యం-ఆత్రేయ
చిత్రం-అభినందన (౧౯౮౮)
సంగీతం-ఇళయరాజా
గానం-ఎస్.పి.బాలసుబ్రమణ్యం



ప్రెమ లేదని, ప్రేమించరాదని,
సాక్ష్యమే నీవని, నన్ను నేడు చాటనీ
ఓ ప్రియా జోహారులు ॥

మనసు మాసిపోతే మనిషే కాదని
కటికరాయికైనా కన్నీరుందని
వలపు చిచ్చు రగులుకుంటె ఆరిపోదని
గడియ పడిన మనసు తలుపు తట్టి చెప్పనీ
ఉసురుకప్పి మూగవోయి నీ ఉపిరి
మోడువారి నీడ తోడు లేకుంటిని ॥౧॥

గుఱుతు చేఱిపివేసి జీవించాలని
చెఱపలేకపోతే మరణించాలని
తెలిసికూడా చేయ్యలేని వెఱ్ఱివాడిని
గుండే పగిలిపోవువరకు నన్ను పాడనీ
ముక్కలలో లేక్కలేని రూపాలలో
మఱలమఱల నిన్ను చూసి రోదించనీ ॥౨॥

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दिल की ये आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले

Saturday, 5 January 2013

साहित्य - हसन कमाल
संगीत - रवि
चित्रपट-निकाह
गायन - महेन्द्र कपूर, सल्मा आघा


म: दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले
लो बन गया नसीब के तुम हम से आ मिले

स: देखें हमें नसीब से अब, अपने क्या मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले, बेवफ़ा मिले

म: आँखों को एक इशारे की ज़हमत तो दीजिये
कदमों में दिल बिछादूँ इजाज़त तो दीजिये
ग़म को गले लगालूँ जो ग़म आप का मिले
दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले

स: हम ने उदासियों में गुज़ारी है ज़िन्दगी
लगता है डर फ़रेब-ए-वफ़ा से कभी कभी
ऐसा न हो कि ज़ख़्म कोई फिर नया मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले बेवफ़ा मिले

म: कल तुम जुदा हुए थे जहाँ साथ छोड़ कर
हम आज तक खड़े हैं उसी दिल के मोड़ पर
हम को इस इन्तज़ार का कुछ तो सिलह मिले
दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले

स: देखें हमें नसीब से अब, अपने क्या मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले, बेवफ़ा मिले

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फ़ज़ा भी है जवाँ जवाँ

साहित्य - हसन कमाल
संगीत - रवि
चित्रपट-निकाह


फ़ज़ा भी है जवाँ जवाँ, हवा भी है रवाँ रवाँ ।
सुना रहा है ये समा सुनी सुनी सी दास्ताँ ॥

पुकारते हैं दूर से, वो क़ाफ़िले बहार के ।
बिखर गये हैं रंग से, किसीके इन्तज़ार के ।
लहर लहर के होंठ पर, वफ़ा की हैं कहानियाँ ॥१॥

बुझी मगर बुझी नहीं, न जाने कैसी प्यास है ।
क़रार दिल से आज भी न दूर है न पास है ।
ये खेल धूप छाँव का, ये कुर्बतें ये दूरियाँ ॥२॥

हर एक पल को ढूँढता, हर एक पल चला गया ।
हर एक पल फ़िराक़ का, हर एक पल विसाल का ।
हर एक पल गुज़र गया, बनाके दिल पे इक निशाँ ॥३॥

वही घड़ी वही पहर, वही हवा वही लहर ।
नई हैं मंज़िलें मगर, वही डगर वही सफ़र ।
नज़र गई जिधर जिधर, मिली वही निशानियाँ ॥४॥

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बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी

साहित्य - हसन कमाल
संगीत - रवि
चित्रपट-निकाह


अभी अलविदा मत कहो दोस्तों
न जाने फिर कहाँ मुलाक़ात हो
क्योंकि ...

बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी ।
ख़्वाबों में ही हो चाहे मुलाक़ात तो होगी ॥

यह प्यार मे डूबी हुयी रँगीन फ़ज़ायें ।
यह चहरें यह नज़रें यह जवाँ रुत यह हवायें ।
हम जाये कहीं इनकी महक साथ तो होगी ॥१॥

फूलों की तरह दिल में बसाये हुए रखना ।
यादों के चिराग़ों को जलाये हुए रखना ।
लम्बा है सफ़र इस में कहीं रात तो होगी ॥२॥

यह साथ गुज़ारे हुए लम्हात की दौलत ।
जज़्बात की दौलत यह ख़यालात की दौलत ।
कुछ पास न हो पास यह सौग़ात तो होगी ॥३॥

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दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये

साहित्य - हसन कमाल
संगीत - रवि
चित्रपट - निकाह
गायन - सल्मा अाघा


दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये ।
हम वफ़ा करके भी तनहा रह गये ॥

ज़िंदगी एक प्यास बनकर रह गयी ।
प्यार के क़िस्से अधूरे रह गये ॥१॥

शायद उनका आख़्ररी हो यह सितम ।
हर सितम यह सोचकर हम सह गये ॥२॥

ख़ुद को भी हमने मिटा डाला मगर ।
फ़ासले जो दरमियाँ थे रह गये ॥३॥

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ದೀಪವು ನಿನ್ನದೆ ಗಾಳಿಯು ನಿನ್ನದೆ

Wednesday, 2 January 2013

ಸಾಹಿತ್ಯ - ಕೆ.ಎಸ್.ನರಸಿಂಹಸ್ವಾಮಿ
ಸಂಕಲನ - ಮೈಸೂರು ಮಲ್ಲಿಗೆ
ಸಂಗೀತ - ಸಿ.ಅಶ್ವಥ್
ಆಧಾರಿತ ರಾಗ - ದಿನ್-ಕಿ-ಪೂರಿಯಾ


ದೀಪವೂ ನಿನ್ನದೆ ಗಾಳಿಯೂ ನಿನ್ನದೆ, ಆರದಿರಲಿ ಬೆಳಕು।
ಕಡಲೂ ನಿನ್ನದೆ ಹಡಗೂ ನಿನ್ನದೆ, ಮುಳುಗದಿರಲಿ ಬದುಕು ॥

ಬೆಟ್ಟವೂ ನಿನ್ನದೆ ಬಯಲೂ ನಿನ್ನದೆ, ಹಬ್ಬಿ ನಗಲಿ ಪ್ರೀತಿ ।
ನೆಳಲೋ ಬಿಸಿಲೋ, ಎಲ್ಲವೂ ನಿನ್ನದೆ, ಇರಲಿ ಏಕರೀತಿ ॥೧॥

ಆಗೊಂದು ಸಿಡಿಲು ಈಗೊಂದು ಮುಗಿಲು, ನಿನಗೆ ಅಲಂಕಾರ ।
ಅಲ್ಲೊಂದು ಹಕ್ಕಿ ಇಲ್ಲೊಂದು ಮುಗುಳು, ನಿನಗೆ ನಮಸ್ಕಾರ ॥೨॥

ಅಲ್ಲಿ ರಣದುಂದುಭಿ, ಇಲ್ಲೊಂದು ವೀಣೆ, ನಿನ್ನ ಪ್ರತಿಧ್ವನಿ ।
ಆ ಮಹಾಕಾವ್ಯ, ಈ ಭಾವಗೀತೆ, ನಿನ್ನ ಪದಧ್ವನಿ ॥೩॥

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ఎడారిలో కోయిల

Wednesday, 19 December 2012

సాహిత్యం - వేటూరి సుందరరామమూర్తి
చిత్రం-పంతులమ్మ (౧౯౭౭)
సంగీతం-రాజన్-నాగేంద్ర
గాయనం-ఎస్.పి.బాలసుబ్రమణ్యం


ఎడారిలో కోయిల తెల్లారనీ రేయిలా
పూదారులన్ని గోదారికాగా
పాడింది కన్నీటి పాట

"పల్లవించు ప్రతిపాటా బ్రతుకు వంటిదే..
రాగమొకటి లేక తెగిన తీగవంటిదే !"

ఎద వీణపై అనురాగమై తలవాల్చి నిదురించు నా దేవత
కల ఆయితే, శిల అయితే, మిగిలింది ఈ గుండెకోత
నా కోసమే విరబూసిన మనసున్న మనసైన మరుమల్లిక
ఆమనులే వేసవులై రగిలింది ఈ రాలుపూత
.. విధిరాతచేత.. నా స్వర్ణసీత

"కొన్ని పాటలింతే..గుండెకోతలోనే చిగురిస్తాయ్ !
కొన్ని బ్రతుకులంతే..వెన్నెలతో చితి రగిలిస్తాయ్ !!"

ఆ రూపమే నా దీపమై వెలిగింది మూణ్ణాళ్ళు నూరేళ్ళుగా
వేదనలో వెన్నెలగా వెలిగించి తన కంటిపాప
చలిమంటలే చితిమంటలై చెలరేగె చెలిలేని నా కౌగిట
బ్రతుకంటే మృతికంటే చేదైన ఒక తీపి పాట
.. చెలిలేని పాట.. ఒక చేదుపాట

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बालमुकुंदाष्टकम्

Sunday, 16 December 2012



करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥१॥

संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥२॥

इन्दीवरश्यामलकोमलांगं इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् ।
सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥३॥

लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृंगारलीलांकितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिंबाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥४॥

शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥५॥

कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररंगे नटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥६॥

उलूखले बद्धमुदारशौर्यं उत्तुंगयुग्मार्जुन भंगलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥७॥

आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥८॥

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हजारों ख्वाहिशें ऐसी

Thursday, 4 October 2012

साहित्य - मिर्ज़ा ग़ालिब


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले ।
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले ॥

डरे क्यूं मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर ।
वह ख़ून जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले ॥१॥

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन ।
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले ॥२॥

भरम खुल जाये ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का ।
अगर उस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले ॥३॥

मगर लिखवाये कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाये ।
हुई सुबह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले ॥४॥

हुई इस दौर में मनसूब मुझ से बादा-आशामी ।
फिर आया वह ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले ॥५॥

हुई जिन से तवक़्क़ू ख़स्तगी की दाद पाने की ।
वह हम से भी ज़्यादा ख़सता-ए-तेग़-ए-सितम निकले ॥६॥

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का ।
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले ॥७॥

(apocryphal verse)
ज़रा कर ज़ोर सीने पर कि तीर-ए-पुरसितम निकले ।
जो वह निकले तो दिल निकले जो दिल निकले तो दम निकले ॥८॥

(apocryphal verse)
ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना क़ाबे से उठा ज़ालिम ।
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर सनम निकले ॥९॥

कहां मयख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहां वाइज़ ।
पर इतना जानते हैं कल वह जाता था कि हम निकले ॥१०॥


चश्म-ऐ-तर=गीली आँखें
खुल्द=जन्नत
कूचे=गली
क़ामत=stature
दराजी=लंबाई
तुर्रा=पगड़ी मे पहननेवाले तुराई
पेच-ओ-ख़म=curls in the hair
मनसूब=association
बादा-आशामी=पीने से संबंधित
तव्वको=उम्मीद
खस्तगी=घाव
खस्ता=टूटा हुआ/घायल/मरीज़
तेग=तलवार

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वृंदावनी सारंग - तुम रब तुम साहेब

Thursday, 13 September 2012

रचना - तानसेन
राग - वृंदावनी सारंग
ताल - विलंबित झपताल/सूलताल


स्थायी
तुम रब तुम साहेब
तुम ही करतार
घटा-घटा पूरन
जल-थल भर भार ॥

अंतरा
तुम ही रहीम
तुम ही करीम
गावत गुनी-गंधर्व
सुर-नर सुर-नार ॥१॥

तुम ही पूरन ब्रह्म
तुम ही अचल
तुम ही जगत गुरु
तुम ही सरकार ॥२॥

कहे मियाँ तानसेन
तुम ही आप
तुम ही करत सकल
जग को भव पार ॥३॥

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