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जोगकौंस - पीर परायी

Wednesday, 11 July 2018

रचना - जगन्नाथबुआ पुरोहित 'गुनिदास'
राग - जोगकौंस
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
पीर परायी, जानी नहीं बालमवा ॥

अंतरा
प्राणपिया तुम ऐसे निठूर भये,
'गुनीदास' की सारी आस गमायी॥

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