कैसे कहूँ मोरी मन की बतिया
Saturday, 2 March 2019
राग - जयजयवंती,
ताल - द्रुत तीनताल
स्थायी
कैसे कहूँ मोरी मन की बतिया,
पिया बिन कटी मोरी सगरी रतिया ॥
अंतरा
आवन कह गये अजहू ना आये,
मिला दे पिया संग अब मोरी सखिया ॥ Read more...
सुभाषितं हारि विशत्यधो गलान्न दुर्जनस्यार्करिपोरिवामृतम्।
तदेव धत्ते हृदयेन सज्जनो हरिर्महारत्नमिवातिनिर्मलम्॥
--बाणभट्टः ("कादम्बरी")
"Heartless people with fine words and Rahu with the Nectar are alike :
unable to consume.
Connoisseurs with fine words and Vishnu with the Kaustubha are alike :
wearing on the heart"
--Bāṇabhaṭṭa (Kādaṃbarī)
राग - जयजयवंती,
ताल - द्रुत तीनताल
राग - जयजयवंती,
ताल - विलंबित तीनताल
ಸಾಹಿತ್ಯ-ಆನಂದದಾಸ