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ಘಲ್ಲು ಘಲ್ಲೆನುತ

Monday, 31 August 2015


ಘಲ್ಲು ಘಲ್ಲೆನುತ ಗೆಜ್ಜೆ ಘಲ್ಲು ದಾದೆನುತ ।
ಬಲ್ಲಿದ ರಂಗನ್‌ ವಲ್ಲಿಯ ಮ್ಯಾಲೆ ಚೆಲ್ಲಿದರೋಕುಳಿಯೋ ॥

ಅರೆದರು ಅರಿಶಿಣವ ಅದಕೆ ಬೆರಸ್ಯಾರೆ ಸುಣ್ಣವ ।
ಅಂದವುಳ್ಳ ರಂಗನ್‌ ಮೇಲೆ ಚೆಲ್ಲಿದರೋಕುಳಿಯೋ ॥೧॥

ಹಾಲಿನೋಕುಳಿಯೋ ಒಳ್ಳೆ ನೀಲದೋಕುಳಿಯೋ ।
ಲೋಲನಾದ ರಂಗನ್‌ ಮ್ಯಾಲೆ ಹಾಲಿನೋಕುಳಿಯೊ ॥೨॥

ತುಪ್ಪದೋಕುಳಿಯೋ ಒಳ್ಳೆ ಒಪ್ಪದೋಕುಳಿಯೋ ।
ಒಪ್ಪವುಳ್ಳ ರಂಗನ್‌ ಮ್ಯಾಲೆ ತುಪ್ಪದೋಕುಳಿಯೋ ॥೩॥

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ಮುಂಜಾನೆದ್ದು ಕುಂಬಾರಣ್ಣ


ಮುಂಜಾನೆದ್ದು ಕುಂಬಾರಣ್ಣ ಹಾಲುಬಾನುಂಡನ ಹಾರ್ಯಾಡಿ ಮಣ್ಣ ತುಳಿದಾನ ।
ಹಾರಿಹಾರ್ಯಾಡಿ ಮಣ್ಣ ತುಳಿಯುತ ಮಾಡ್ಯಾನ ನಾರ್ಯಾರು ಹೋರುವಂತ ಐರಾಣಿ ॥

ಹೊತ್ತಾರೆದ್ದು ಕುಂಬಾರಣ್ಣ ತುಪ್ಪಬಾನುಂಡನ ಘಟ್ಟೀಸಿ ಮಣ್ಣ ತುಳಿದಾನ ।
ಘಟ್ಟೀಸಿ ಮಣ್ಣ ತುಳಿಯುತ ಮಾಡ್ಯಾನ ಮಿತ್ರೇರು ಹೋರುವಂತ ಐರಾಣಿ ॥೧॥

ಅಕ್ಕಿಹಿಟ್ಟು ನಾನು ತಕ್ಕೊಂಡು ಬಂದೀವ್ನಿ ಗಿಂಡೀಲಿ ತಂದೀವ್ನಿ ತಿಳಿದುಪ್ಪ ।
ಗಿಂಡೀಲಿ ತಂದೀವ್ನಿ ತಿಳಿದುಪ್ಪ ಕುಂಬಾರಣ್ಣ ತಂದಿಡು ನಮ್ಮ ಐರಾಣಿ ॥೨॥

ಕುಂಬಾರಣ್ಣನ ಮಡದಿ ಕಡಗದ ಕೈಯಿಕ್ಕಿ ಕೊಡದ ಮ್ಯಾಲೇನ ಬರೆದಾಳ ।
ಕೊಡದ ಮ್ಯಾಲೇನ ಬರೆದಾಳ್ ಕಲ್ಯಾಣದ ಶರಣಬಸವನ ನಿಲಿಸ್ಯಾಳ ॥೩॥

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नींद से आँख खुली है

Monday, 17 August 2015

साहित्य - शाहिद कबीर
संगीत - जगजीत सिंघ
गायन - चित्रा सिंघ


नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है |
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है ॥

बाँध रखा है किसी सोच ने घर से हम को |
वर्ना अपना दर-ओ-दीवार से रिश्ता क्या है ॥१॥

रेत की, ईंट की, पत्थर की हो, या मिट्टी की |
किसी दीवार के साये का भरोसा क्या है ॥२॥

घेर कर मुझ को भी लटका दिया मस्लूब के साथ
मैं ने लोगों से यह पूछा था कि क़िस्सा क्या है ॥३॥

संग-रेज़ों के सिवा कुछ तिरे दामन में नहीं
क्या समझ कर तू लपकता है उठाता क्या है ॥४॥

अपनी दानिस्त में समझे कोई दुनिया ‘शाहिद’ |
वर्ना हाथों में लकीरों के अलावा क्या है ॥५॥


मस्लूब=Crucified Person
संग-रेज़ो=Pebbles
तिरे दामन - Your cloak
दानिस्त=Knowledge

Chitra Singh performs :

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एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं

Wednesday, 5 August 2015

साहित्य - सुदर्शन फ़ाकिर
संगीत - ताज अहमद ख़ान
गायन - महमद रफ़ी


एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं |
जो ग़म-ए-दोस्त में नशा है, शराबों में नहीं ॥

हुस्न की भीख ना मांगेंगे, ना जल्वों की कभी |
हम फ़क़ीरों से मिलो खुल के, हिजाबों में नहीं ॥१॥

हर जगह बीते हैं आवारा ख़यालों की तरह |
ये अलग बात है हम आपके ख़्वाबों में नहीं ॥२॥

ना डूबो साग़र-ओ-मीना में यह ग़म, एै ‘फ़ाकिर’ |
के मक़ाम इनका दिलों में हैं, शराबों में नहीं ॥३॥


साग़र-ओ-मीना=Cup and Goblet/Decanter (of wine)

Mohammad Rafi performs :

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तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुज़री है

Monday, 3 August 2015

साहित्य - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रात यूँ दिल में तेरी खोयी हुयी याद आयी,
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाये,
जैसे सहरा में हौले से चले बादल सी,
जैसे बीमार को बेबजह क़रार आ जाये

तुम आये हो, ना शब-ए-इंतज़ार गुज़री है |
तलाश में है सहर, बार बार गुज़री है ॥

जुनूँ में जितनी भी गुज़री, ब-कार गुज़री है |
अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है ॥१॥

हुयी है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तगू जिस शब |
वह शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है ॥२॥

वह बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र ना था |
वह बात उनको बहुत ना-गवार गुज़री है ॥३॥

ना गुल खिले हैं, ना उनसे मिले, ना मय पी है |
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है ॥४॥

चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़री है |
क़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है ॥५॥


ब-कार=useful, well spent
अगरचे=although
नासेह = Advisor, Preacher
कू-ए-यार=Beloved's home/street
सर-ए-कू-ए-यार=Towards/at the beloved's home
ग़ारत=pillage, plunder
गुल-चीं=flower picker
ग़ारत-ए-गुल-चीं=destruction by the flower picker
क़फ़स=Cage
बे-क़रार=uneasy,restless

Dr. Radhika Chopra performs (YouTube)

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