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उठत जिया हूक सुनी कोयल कूक

Monday, 21 October 2013

रचना - श्रीकृष्ण नारायण रतनजानकर
राग - बसंत मुखारि
ताल - द्रुत तीनताल


स्थायी
उठत जिया हूक सुनी कोयल कूक,
बिरहा अगन झरी,
रैन-दिन नहीं चैन पड़े मोरी, का री करूँ ॥

अंतरा
लगन लगी मिलवे को चाहे,
जिया नहीं मानत,
निस-दिन नीर झरत नैनन सों, का री करूँ ॥

Smt. Malini Rajukar performs :

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याद पिया की आये

Saturday, 5 October 2013

राग - भिन्न शड्ज पर आधारित
ताल - जत



याद पिया की आये
यह दुःख सहा ना जाये, हाये राम

बाली उमरिया सुनरी सजनिया
जोबन बीता जाये, हाये राम

बैरी कोयलिया कूहूक सुनाये
मुझ बिरहन जिया जलाये
पी बिन रहा ना जाये, हाये राम

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आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक

साहित्य - मिर्ज़ा ग़ालिब


आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक ।
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक ॥

दाम हर मौज मे है, हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग ।
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक ॥१॥

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब ।
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक ॥२॥

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल ना करोगे लेकिन ।
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक ॥३॥

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम ।
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक ॥४॥

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती, ग़ाफ़िल ।
गर्मी-ए-बज़्म है एक रक़्स-ए-शरर होने तक ॥५॥

ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज ।
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक ॥६॥


सर होना = conquer, tame
ज़ुल्फ़ के सर होना = tame the curls of hair
दाम [Prk. दामं; S. दाम (base दामन्), rt. दा 'to bind'], = A rope, cord, string; a fetter... here, a net
दाम हर मौज मे = A net in every wave
नहंग = a crocodile,a water dragon or other similar monster
काम-ए-नहंग = action of crocodile
हल्क़ा-ए-सद = hundred chains
हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग = hundred lines of crocodiles/monsters in vile action
गौहर = pearl
सब्र-तलब = needing/demanding patience
ख़ून-ए-जिगर = devastation with pain
तग़ाफ़ुल = ignore
खुर - sun
परतव - rays
परतव-ए-ख़ुर - sun rays
शबनम - dew
फ़ना = self-destruction
इनायत की नज़र = merciful glance
बेश = lot, too much
फ़ुर्सत-ए-हस्ती = Duration Of Life
ग़ाफ़िल = negligent (here, addressing the muse)
गर्मी-ए-बज़्म = Warmth of the gathering/party
रक़्स-ए-शरर = Dance of the spark
ग़म-ए-हस्ती = sorrows of life
जुज़ = besides, except, other than
मर्ग = death
शमा = candle
सहर = Dawn/Morning

Audio Links : Ghulam Ali, Jagjit Singh, Jagjit Singh, Ustad Barkat Ali Khan
Analysis here

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