दिल में इक लहर सी उठी है अभी
Thursday, 14 November 2013
साहित्य - नासिर क़ाज़मी
दिल में इक लहर सी उठी है अभी ।
कोई ताज़ा हवा चली है अभी ॥
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में ।
कोयी दीवार सी गिरी है अभी ॥१॥
कुछ तो नाज़ुक़ मिज़ाज हैं हम भी ।
और यह चोट भी नयी है अभी ॥२॥
भरी दुनिया में जी नहीं लगता ।
जाने किस चीज़ की कमी है अभी ॥३॥
तू शरीक़-ए-सुखन नहीं है तो क्या ।
हम-सुखन तेरी खामोशी है अभी ॥४॥
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से ।
तेरी आवाज़ आ रही है अभी ॥५॥
शहर की बे-चिराग़ गलियों में ।
ज़िन्दग़ी तुझको ढूँढती है अभी ॥६॥
सो गये लोग उस हवेली के ।
एक खिड़की मगर खुली है अभी ॥७॥
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर' ।
ग़म न कर ज़िन्दग़ी पड़ी है अभी ॥८॥
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