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श्री अन्नपूर्णास्तोत्रम्‌

Saturday, 17 December 2011

साहित्यम् - आदिशंकराचार्यः


नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी॥१॥

नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमान विलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीराऽगुरुवासितांगरुचिरा काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥२॥

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मैकनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवांछितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥३॥

कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शंकरी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ॐकारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥४॥

दृश्याऽदृश्यप्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।
श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥५॥

उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी दृशांशुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥६॥

आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्यांकुरा शर्वरी।
कामाकांक्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥७॥

देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुंदरी
वामस्वादु पयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताऽभीष्टकरी दशाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥८॥

चर्न्द्रार्कानल कोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलहरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशसांगकुशधरी काशीपुराधीश्वरी
शिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥९॥

क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवंकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥१०॥

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्‌यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥११॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाःशिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्‌॥१२॥

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितम्‌ अन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

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