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गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले

Thursday, 3 December 2009

साहित्य - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
गायन - मेहदी हसन


गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले |
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले ॥

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो |
कहीं तो बह्र-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले ॥१॥

कभी तो सुबह तेरे कुंज-ए-लब से हो आगा़ज़ |
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले ॥२॥

बड़ा है दर्द का रिश्ता यह दिल ग़रीब सही |
तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़मगु़सार चले ॥३॥

जो हम पे गु़ज़री सो गु़ज़री मगर शब-ए-हिज्रां |
हमारे अश्क तेरि आक़बत संवर चले ॥४॥

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूं की तलब |
गिरह में लेके गरेबां के तार तार चले ॥५॥

मक़ाम फ़ैज़ कोई राह में जचा ही नहीं |
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले ॥६॥

बाद-ए-नौबहार=Breeze of new spring
क़फ़स=Cage
सबा=Breeze
कुंज-ए-लब=Sweet Lips
बह्र-ए-ख़ुदा=For God's sake
आगा़ज़=Free
शब=Night
सर-ए-काकुल=Fragrant wavy head (hair)
मुश्कबार=Encompass
ग़मगुसार=Loyal follower
अश्क=tears
आक़बत=Fate/destiny
आक़बत संवर चले=make destiny succeed
मक़ाम=Destination
कू-ए-यार=Corner of the beloved (beloved's place)
सू-ए-दार=Death's platform

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